Mahakumbh 2025: अब 12 बरस बाद लौटेगा कुंभ, लौटेंगे श्रद्धालु, लौटेगी रौनक… ‘बारात’ की विदाई के बाद खाली पड़ा जनवासा
प्रयागराज में आनंद भवन के पास पान की दुकान पर खडे़ एक चाचा ने कहा- ” अब कौन पूछेगा संगम किधर है. अब किसको बताएँगे नागवसुकी मंदिर कैसे जाना है. प्रयागराज जंक्शन कितना दूर है. सवा महीने ये सब हमारी दिनचर्या का हिस्सा था. पर अब समय काटे नहीं कटेगा.
Prayagraj Mahakumbh 2025: 45 दिन तक जहां देश-विदेश से जुटे श्रद्धालुओं का सैलाब था, आज वहां चप्पे-चप्पे पर मेला उजड़ने का दर्द नजर आ रहा है. बात प्रयागराज महाकुंभ की हो रही है. जहां 26 फरवरी को महाकुंभ मेले की समाप्ति के बाद हालात अब धीरे-धीरे सामान्य दिनों जैसे हो रहे हैं. हालांकि संगम नगरी में अभी भी कई श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंच रहे हैं. लेकिन अब कुंभ मेले जैसी रौनक नहीं है. और यह लाजिम भी है. यहां सवा महीने के मेले में दुनिया भर के श्रद्धालु करोड़ों की संख्या में पहुंचे. अब मेला नहीं बचा है तो बस उसकी रौनक याद रह गई है. तंबुओं का शहर अब उदास हैं! यही त्रिवेणी थी, यहीं तंबुओं की कतार थी, संतों का जमावड़ा था, श्रद्धालुओं का रेला था. लेकिन अब कुछ नहीं बचा हैं. 45 दिन में 66.30 करोड़ लोग आए और लौट गए. लेकिन जीवन का संगम अब अकेला-उदास सा है.
महाकुम्भ खत्म, चमक गायब
जिस संगम द्वार पर तिल रखने तक की जगह नहीं थीं आज वहां गाड़ियां दौड़ रहीं है. महाकुंभ के दौरान 45 दिन तक यहां पैदल चलने तक की जगह नहीं थी. जहां देखों वहां श्रद्धालुओं का सैलाब, केशरिया रंग के वस्त्र पहने साधु संत और भीड़ को नियंत्रित करते हुए पुलिसकर्मी नजर आते थे. लेकिन आज वो सब नहीं दिख रहा है. गाड़ियां चल रही हैं, लोग आ रहे हैं लेकिन वो चमक गायब है.
अब 12 बरस बाद लौटेगी रौनक
अब ऐसा लग रहा हैं मानों वे 45 दिन जैसे जादू भरे थे. लोग खिंचे चले आ रहे थे. वे नदी में उतरते थे, नदी उनमें उतरती थी- जैसा सारा संसार इसी त्रिवेणी में समा गया हो. प्रयागराज अपनी सारी शक्ति से सबके स्वागत में लगा रहा. अब प्रयागराज में कुंभ वाली रौनक फिर 12 बरस बाद यानी कि 2037 में लौटेगी. अभी दो साल बाद 2027 में नासिक में कुंभ मेले का आयोजन होगा. जिसकी तैयारी शुरू हो गई है.
महाकुम्भ के दौरान सबसे अधिक भीड़ संगम पर थी, लेकिन अब वैसी भीड़ नजर नहीं आ रही. प्रयागराज का महत्व है तो लोग आ रहें और स्नान कर रहे लेकिन वो चमक नहीं है. हालांकि संगम सन्नाटे में नहीं है. लोग अब भी आ रहे हैं- खुश भी हैं कि अब उन्हें भीड़ का सामना नहीं करना पड़ रहा. तारीख़ों के परे एक कुंभ सबके भीतर बसता है.
“महाकुंभ में भीड़ की वजह से नहीं आए”
नागपुर से संगम स्नान करने आये विनय मिश्रा डुबकी लगाकर खुश हैं. उनका कहना है कि हमारे लिए ये मेला ही है. उस वक्त भीड़ की वजह से नहीं आए थे. 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर हुई घटना से डर भी लगने लगा था इसलिए कुंभ खत्म होने के बाद आने का प्लान बनाया. हमें अभी बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन वो भीड़ नहीं हैं.
बगल में खडे संतोष पांडेय परिवार संग अहमदाबाद से नहाने आए हैं. उन्होंने तपाक से कहा कि कुंभ के हिसाब से कुछ लोग हैं अभी लेकिन अनुभव सामान्य ऐसा हो रहा है. इतने में 70 वर्षीय राजन लाल मिश्रा बोले, “बेटा भीड़ में बड़े बुजुर्गों के लिए परेशानी थी इसलिए हम लोग समय का इंतजार कर रहे थे. लेकिन अब भी सब कुछ देख कर बहुत अच्छा लग रहा है. मोदी-योगी ने कुंभ को दिव्य-भव्य बना दिया.
घाटों से भीड़ गायब, पांटून पुल पर इक्का-दुक्का लोग दिखे
वहीं, मेला खत्म होने से कई जगहों पर सन्नाटा है. घाटों से भीड़ गायब है, पांटून पुल पर इक्का-दुक्का लोग नजर आ रहे तो वहीं मेले में सबसे आकर्षण का केंद्र रहा अखाड़ा मार्ग मानों उदास होकर बैठ गया है. जहां कभी साधु संतों के शिविर में भीड़ थी वहां अब सन्नाटा है और धूल दिख रही है. कुछ कैंप बचे हैं तो उनके सामान निकालने के लिए ट्रेक्टर खड़े दिख रहे हैं. सड़क पर लगी दुकान भी अब हटा दी गई हैं. टेंट भी उखड़ने लगे हैं. कुल मिलाकर सवा महीने गुलजार रहने वाला अखाड़ा मार्ग की अब चमक फीकी हो चुकी है.